किस योद्दा को दो बार फांसी पर लटकाया गया

1857 की क्रांति ने पूरे देश में वीरों को भर दिया था मप्र मालवा क्षेत्र में एक ऐसा वीर योद्दा था जिसको अंग्रेजी शासन ने दो बार फांसी के फंदे पर लटकाया था सरदारपुर और मानपुर-गुजरी जैसी रणनीतिक महत्व वाली अंग्रेजों की छावनी के अलावा महूं,आगर ,नीमच, महिदपुर, मंडलेश्वर छावनी से अंग्रेजी सेना को खदेड़ने वाले वीर की कहानी Madhya Pradesh history

1857 क्रांति का वीर योद्धा, सात वर्ष की उम्र में संभाली थी गद्दी

आज के उज्जैन , इंदौर वाले क्षेत्र में शासन कर रहे अजीत सिंह और महारानी इंद्रकुँवर के घर में 14 सितंबर 1824 को इनका जन्म हुआ था। अमर बलिदानी बख्तावर सिंह के मन मे बचपन से ही अंग्रेजों के खिलाफ नफरत पल रही थी। इतिहासकार बताते हैं कि, महाराणा बख्तावर सिंह को महज सात वर्षों की उम्र में ही सत्ता और सियासत की बागडोर सम्हालनी पड़ी थी। अंग्रेजी शासन के खिलाफ बगावत का मौका तब मिला जब देश के तमाम राजाओं को गुप्त रूप से सूचना मिली कि जल्द ही अंग्रेजी शासन के खिलाफ मैदान में उतारना है। ।

महाराणा बख्तावर सिंह ने भी अंग्रेजो से विद्रोह की तैयारी शुरू कर दी थी ,और अंग्रेजों को मालवा और समीपस्थ गुजरात से खदेड़ने की योजना बनाई 3 जुलाई 1857 को सूर्य उदय होते ही महाराणा बख्तावर सिंह अपनी सेना की एक टुकड़ी के साथ अंग्रेजों के भोपावर छावनी पर क्रांतिकारी सेना ने हमला कर दिया। अमझेरा की सेना से घबराकर अंग्रेजों की सेना बिना लड़े भाग खड़ी हुई। इसके बाद उन्होंने पुनः रणनीति तैयार की और सरदारपुर और मानपुर-गुजरी जैसी रणनीतिक महत्व वाली अंग्रेजों की छावनी के अलावा महूं,आगर ,नीमच, महिदपुर, मंडलेश्वर छावनी से अंग्रेजी सेना को खदेड़ दिया। इस घटना के बाद मालवा क्षेत्र में ब्रिटिश सरकार की प्रतिष्ठा का गहरा सदमा लगा था

अंग्रेजों का पलटवार और बख्तावरसिंह की वीरता

मालवा क्षेत्र के हिस्से को जाता देख अंग्रेज सहम से गए थे और समझ चुके थे कि यदि महाराणा बख्तावर सिंह को समय पर नहीं रोका गया तो निमाड़ और मालवा का क्षेत्र भी हाथ से निकल जाएगा। उन्होंने अन्य छावनियों से सैन्य बलों को बुलाकर इकट्ठा करना शुरू कर दिया। 31 अक्टूबर 1857 को अंग्रेजों ने धार के किले पर बलपूर्वक आक्रमण कर दिया,

महाराणा बख्तावर सिंह के न होने का अंग्रेजों को इसका लाभ मिला कर्नल डूरंड ने 5 नवंबर 1857 को अमझेरा के किले पर आक्रमण की योजना बना ली, परंतु अमझेरा की क्रांतिकारी सेवा का अंग्रेजों के सैनिकों को इतना भय था कि कर्नल के आदेश के बावजूद सेना भोपावर से आगे नहीं बढ़ी और बिना आक्रमण किये ही भाग खड़ी हुई। बाद में लेफ्टिनेंट हचिंसन के नेतृत्व में अंग्रेज सेना की पूरी बटालियन को अमझेरा भेजने की रणनीति तैयार की गई।

संधि के बहाने दगाबाजी

धार में रह रहे कर्नल डूरंड को सूचना मिली कि महाराणा बख्तावर सिंह समीपस्थ कस्बे लालगढ़ में हैं। डूरंड बखूबी जानता था कि बख्तावर सिंह को सीधे गिरफ्तार करना खतरे से खाली नहीं, इसलिए उसने कुटिल चाल चलते हुए अमझेरा रियासत के कुछ प्रभावशाली लोगों को जागीर देने का लालच दिया व अपने साथ मिला लिया। इनके जरिए कर्नल डूरंड ने महाराणा बख्तावर सिंह के पास संधिवार्ता का संदेश भेजा।

कुटिल मध्यस्थों ने महाराणा को भ्रमित कर अंग्रेजों से संधिवार्ता करने हेतु मना लिया। 11 नवंबर, 1857 को अपने सैनिकों के मना करने के बावजूद वीर महाराणा बख्तावर सिंह 12 विश्वसनीय अंगरक्षकों को लेकर लालगढ़ किले से धार के लिए निकल पड़े। वहीं कर्नल ने अपनी योजना के अनुसार महाराणा को रास्ते में रोकने के लिए हैदराबाद से सेना की टुकड़ी बुला ली और कर्नल डूरंड की योजना के मुताबिक, रास्ते में इन्हें अंग्रेजों की हैदराबाद से आई अश्वारोही सैन्य टुकड़ी ने रोक लिया और गिरफ्तार कर इंदौर जेल भेज दिया

दो बार दी गई फांसी

21 दिसंबर, 1857 को इंदौर रेसीडेंसी में प्रमुख राज्यों के वकीलों की उपस्थिति में सुनवाई शुरू की। बख्तावर सिंह ने अंग्रेजों के इस नाटक को नकारते हुए बचाव का कोई प्रयास नहीं किया उसके बाद राबर्ट हेमिल्टन ने बख्तावर सिंह को असीरगढ़ किला (वर्तमान बुरहानपुर जिले में स्थित) में एक बंदी की हैसियत से भेजने का निर्णय लिया, लेकिन फरवरी 1858 के प्रथम सप्ताह में कुटिलतापूर्वक अंग्रेजों ने यह निर्णय लिया कि अमझेरा के राजा को फांसी दे दी जाए ताकि फिर कोई किसी अन्य रियासत के राजा क्रांति की आवाज न उठा सकें

अंततः 10 फरवरी, 1858 को 34 वर्षीय अमझेरा नरेश को इंदौर में नीम के पेड़ पर फांसी दे दी गई। किंतु देह से बलशाली महाराणा बख्तावर सिंह के वजन से फांसी का फंदा टूट गया। इतिहासकारों की माने तो उस दौर में अंग्रेजों ने फाँसी के कुछ नियम बनाए थे यदि किसी को फांसी दी जा रही है और फांसी देते वक्त फंदा टूट जाता है तो जिसे फांसी दी गई है उसे माफ कर दिया जाता था परंतु यहां पर अंग्रेजों ने अपने ही बनाए नियम को तोड़ दिया क्योंकि महाराणा बख्तावर सिंह का इतना डर था कि उन्हें नियम बदलने पड़े। और भारत की भूमि के इस वीर सपूत को वीर योद्धा को अंग्रेजों ने दोबारा फांसी के फंदे पर लटका दिया गया

दिनेश कुमार

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