न्यूज चैनल हों या यूट्यूब इन दिनों यंहा पर एक ही स्थान का नाम चर्चा में है वो है बागेश्वर नाम , जाहिर है जब एक स्थान और व्यक्ति पर इतने बड़े देश में रहने वाले लोगों के बीच चर्चा चल रही हो तो भला पत्रकार पीछे केसे रह सकता है बेहतरीन रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ट पत्रकार बृजेश राजपूत बता रहें हैं बागेश्वर धाम की जमीनी हकीकत अलग तरीके से
वायदा था कि बागेश्वर धाम बन गये गढा गांव की कहानी भी कहूंगा तो बता दूं कि छतरपुर से खजुराहो जाने वाले रास्ते पर बसे इस छोटे से गांव में सत्तर से सौ घर होंगे और करीब हजार लोगों की आबादी मगर इन दिनों गांव वालों की पौ बारह है। वजह है बागेश्वर धाम सरकार वाले महाराज पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जलवा और उनकी दिनों दिन तेजी से बढ रही लोकप्रियता। महाराज को देखने सुनने और मिलने तकरीबन हजार लोगों की भीड तो पिछले एक साल से रोज ही आ रही है और ये भीड मंगलवार और शनिवार को कई गुनी बढ जाती है तो कुछ खास त्योहारों पर लाखों की संख्या में इतनी ज्यादा हो जाती है कि उसे संभालने में प्रशासन के हाथ पैर फूल जाते हैं और फिर सब छोड दिया जाता है भगवान बागेश्वर धाम के भरोसे।
वैसे भी ये सब देख कर ही भरोसा होता है कि कहीं कोई भगवान है वरना बागेश्वर धाम के मंदिर तक पहुंचने के गांव के रास्ते पर आमने सामने से आने वाली छोटी बडी मंझोली गाड़ियां जब फंसती हैं तो समझ नहीं आता अब निकलेगे कैसे और कब तक। धाम तक जाने का रास्ता एक है जो गांव के अंदर से जाता है और गांव के रास्ते के एक एक घरों की दहलान, चबूतरे और सीढ़ियों पर बाजार सजा रहता है। कहीं दहलान पर पूजा प्रसाद का सामान मिल रहा है तो कहीं श्रृंगार का सामान सजा है कहीं चाय बनाकर बेची जा रही है तो कहीं खिलौने बिक रहे हैं।
एकदम मेला सा लगता है मंगलवार और शनिवार को तो। कुछ घरों के लोग तो खुद दुकानें लगाते है, नहीं तो अपने घर के सामने का चबूतरा एक दिन के तीन सौ से लेकर पांच सौ रुपये तक किराये पर दे देते हैं। दिन में बाजार बना चबूतरा रात में बाहरी लोगों के सोने के काम भी आ जाता है। खटिया बिछाकर यहां पर रात में लोगों को सुला भी दिया जाता है। वैसे इस गांव में आने वालों के रूकने के लिये होटल तो नहीं घरों में ही होम स्टे खोल लिये गये हैं और तकरीबन सभी के नाम बागेश्वर धाम महाराज के नाम पर हैं। अंदर जाने पर इन होम स्टे में कमरों के नाम पर बडा हाल और उसमें पडे पलंग ही होते हैं जहां एक रात के लिये ढाई सौ से पांच सौ रूपये तक ले लिये जाते हैं। इन होम स्टे के अलावा दिन में चलने वाले भोजनालय भी रात में लाज में बदल जाते हैं। यहां पर भी जमीन पर या किराये के फोल्डिंग वाले पलंगों पर लोगों को सुलाकर पैसे वसूल लिये जाते हैं। वैसे दिनोंदिन आ रही भीड को थामने के लिये कुछ नये इंतजाम किये जा रहे हैं मगर जिस गति से उनका काम चल रहा है उससे लगता है कि बागेश्वर धाम आने वाले लोगों की परेशानियां कुछ महीने और दूर नहीं होंगी। अब जिस गांव में रूकने ठहरने की अच्छी व्यवस्था ना हो तो वहां कैसे आप सार्वजनिक शौचालयों और उसमें भी महिला के लिये कुछ अलग होने की उम्मीद भी नहीं करिये।
पहाडी पर बने बागेश्वर धाम मंदिर के सौ मीटर पास के इलाके में चारों तरफ अस्थायी दुकानें खुल गयी हैं। कच्चे और कमजोर स्टक्चर वाली ये दुकानें पूजा पाठ प्रसाद और खाने पीने की है। जिनके लिये अच्छा खासा पैसा लिया और दिया जा रहा है। दुकानों के किराये बीस से पचास हजार रुपये महीने से भी ज्यादा है। दुकान खोलने वालों में छतरपुर और पन्ना के लोग तो हैं ही उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के लोग भी यहां का धंधा देखकर आ गये हैं। बागेश्वर धाम भोजनालय चलाने वाले राजेश चौरसिया बताते हैं कि हम तो महाराज जी से मिलने आये थे बेरोजगार थे तो महाराज ने पर्चा लिख दिया कि काम शुरू करो तरक्की होगी तो यहीं दुकान खोलकर बैठ गये आज दुकान के दम पर अपने गांव में मकान भी बना लिया है। ऐसी ही कहानी और दुकानदारों की है जो पिछले एक साल में ही अच्छे खासे पनप गये। ये बात भी सामने आती है कि ये दुकानें बाबा के रिश्तेदारों के खेतों की जमीन पर बनी हैं तो किराया भी उनको ही मिलता है।
मंदिर के ठीक सामने बने सामुदायिक भवन में पंडित धीरेंद्र शास्त्री का डेरा होता है। नीचे उनका दरबार लगता है जिसमें वो लोगों की सुनते हैं और तकलीफ दूर करने के उपाय के तौर पर दस से इक्कीस बार बागेश्वर धाम के बालाजी महराज आने की शर्त रख देते हैं। साफ है कि उनसे एक बार मिलने आया भक्त अनेक बार आयेगा और बागेश्वर धाम की अर्थव्यवस्था की तरक्की में योगदान देगा।
धाम में आने वालों की संख्या बढने पर एक बडा हाल, विश्रामालय और पक्की दुकानें भी बन रहीं हैं मगर अब भी बडी जरूरत गाडियों की पार्किंग की जगह की है। दूर दराज से गाडियों से आने वालों की गाडियां कहां पर खडी हो इसके पक्के इंतजाम नहीं होने पर लोग भटकते ही रहते हैं। दिनों दिन बढ रही भीड से निपटना प्रशासन के लिये आसान नही है। अधिकारी दबे स्वर में बताते हैं कि ये भीड कभी बडे अनिष्ट का शिकार ना हो जाये इसकी चिंता हमेशा बनी रहती है। दीन दुखियों की दुनिया में कमी नहीं है और बागेश्वर धाम की ख्याति बढने से बुंदेलखंड की गरीब जनता तो यहां आ ही रही है विदेश के लोग भी दर्शनार्थियों की भीड में अब दिख जाते हैं। बाबा का जलवा तो बढ रहा है जरूरत है बागेश्वर धाम में दूर दराज से आ रहे हजारों श्रद्धालुओं को दी जाने वाली मूलभूत सुविधाओं और सुरक्षा की जिसके लिये सरकार और प्रशासन को जुटना होगा वरना आग लगने के बाद कुआ खोदने की हमारे यहां तो पुरानी परंपरा है ही।
Aditya Kinkar Pandey is a Since completing his formal education in journalism in 2008, he has built for delivering in-depth and accurate news coverage. With a passion for uncovering the truth, Aditya has become bring clarity and insight to complex stories. work continues to investigative journalism.