जिस प्रदेश से सबसे ज्यादा नदियों का उदगम हो और वहां के अधिकतम जिले सूखाग्रस्त घोषित हो तो इसे जलवायु परिवर्तन मानेंगे या सरकारों की नाकामी या भृष्टाचार की पराकाष्ठा हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश की जिसे नदियों का मायका कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगा यहां से सबसे ज्यादा नदियां जन्म लेकर दूसरे राज्यों में जाकर न सिर्फ जल की आपूर्ति करती है बल्कि दूसरी नदियों से मिल कर उन्हें बड़ा स्वरूप भी प्रदान करती है बहुत कम जिले हैं ज़हां पर किसी न किसी नदी का उदगम स्थल न हो नर्मदा,चंबल , ताप्ती, सोन , बेतवा, बैनगंगा,जैसी नदियों का उदगम मध्यप्रदेश से होता है। ऐसे में राज्य में अगर लोग पीने के पानी और सिंचाई को तरसे तो इसे बड़ा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा
मंडला सूखाग्रस्त जिला , पानी के लिए अरबों रूपए खर्च
भारत की धड़कन मतलब दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश को नदियों का मायका कहा जाता है यहां से दौ सो अधिक बडी और मध्यम नदियां निकल कर करोड़ों लोगों को जीवन देती है ये और बात है कि इतनी अधिक नदियां होने के बावजूद प्रदेश के कई हिस्से सूखे से ग्रसित हैं जो इंसान की लापरवाही और सरकारों के काम के तरीकों का का नतीजा है बहुत कम जिले हैं ज़हां पर किसी न किसी नदी का उदगम स्थल न हो।
मंडला जिले में भी कई छोटी बड़ी नदियों का जन्म हुआ है यहां से पतित पावन नर्मदा नदी निकलती है इसके बावजूद जिले का बड़ा हिस्सा सूखाग्रस्त है पानी रोकने के नाम पर बीते दो दशक में अरबों रुपए खर्च कर दिए गए हैं लेकिन पानी का संकट खत्म नहीं हुआ है साल दर साल पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही है 2006-7 से लगभग 2009-10 तक मनरेगा योजना में पानी रोकने के नाम पर जिले के हर दूसरे गांव में एक से दो स्टाफ डेम बनाए गए
जिनमें से आधे पहली बरसात में बह गए थे जो शेष थे उनमें गेट नं लगने और रिसाव ने पानी रोको अभियान पर पलीता लगा दिया था औसत निकाले तो दस से पंद्रह फीसदी ही सफल हुए होंगे एक दशक बीत जाने के बाद कांप से भर चुके हैं।
फिर स्टाप डेम और तालाबों के नाम करोड़ों खर्च
बीते तीन सालों के आंकड़े देख लिजिए पता चलेगा कि ज़हां पहले स्टाप डेम बने थे उसी के आसपास या उसी का पुनर्निर्माण हुआ है मनरेगा योजना से बीते तीन साल में तालाबों, स्टाप डेम का निर्माण पानी रोकने के लिए किया जा रहा है आसपास देख लिजियेगा कितनों में पानी भरा है कितने अधूरे पड़े हुए हैं ऐसा लगता है कि मकसद पानी को स्काटाप डेम , तालाबों में भरने का कम और जेबों में पैसे भरने की कवायद ज्यादा रही है।
गौर करें कि निवास ब्लॉक में गौर परियोजना छः वर्षों से अधर में लटकी हुई है जितना पैसा अमृत सरोवर में खर्च हो गया उतने में गौर परियोजना का अधूरा काम पूरा हो जाता सवाल यह है कि परवाह किसे है मकसद जेबों को भरने का ज्यादा है। न की पानी के गंभीर संकट से निपटने की इसी को आपदा में अवसर बदलना कहते हैं जो कि इस जिले में बाखूबी से अंजाम दिया गया है।
Aditya Kinkar Pandey is a Since completing his formal education in journalism in 2008, he has built for delivering in-depth and accurate news coverage. With a passion for uncovering the truth, Aditya has become bring clarity and insight to complex stories. work continues to investigative journalism.