महाकौशल क्षेत्र के इतिहास को यूं तो बेहद कम ही संजोकर रखा गया है लेकिन जितना भी इतिहास हमें पढ़ने और सुनने को मिलता है वह अदभुत है यहां पर कल्चुरी और गौडवाना का इतिहास ज्यादा पढ़ने को मिलता है। नवरात्रि प्रारंभ हो गई है ऐसे में एक स्थान की चर्चा बेहद महत्वपूर्ण है जो इतिहास के साथ धार्मिक मान्यताओं को समेटे हुए है
मध्यप्रदेश के आदिवासी जिला मंडला में भी चैत्र नवरात्र को लेकर लोगों ने खास तैयारी कर ली है वहीं जिले के निवास तहसील मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर बिझौली गांव का दुर्गा मंदिर अपने इतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के लिए खासा जाना जाता है यहां पर 11 सौ वर्ष पुरानी अदभुत अव्दितीय मां दुर्गा की प्रतिमा विराजमान हैं जिसके दर्शन के लिए भी लोग यहां पर दूर दूर से तो आते ही है वही चैत्र नवरात्र में अपनी समस्या और मुराद पूरी करने के लिए भी आते है बताया जाता है कि श्रध्दालु यंहा पर मिट्टी के कलश पर ज्वारे सौ कर नौ दिन तक सेवा करते हैं आज से श्रध्दालु मिट्टी के कलश लेकर बड़ी तादाद में पहुंच रहे हैं जिसके लिए यहां पर लोगों को भी लगाया गया है जो राजिस्टर में ज्वारे बौने वालों के नाम लिखते जा रहे हैं
कल्चुरी कालीन मुर्ती
जानकार बताते हैं कि आज का बिझौली गांव जो कभी विंध्य नगर के नाम से जाना जाता था ज़हां पर कल्चुरी साम्राज्य ही था मंदिर में मौजूद प्रतिमा कल्चुरी कालीन है जो कि आठवी शताब्दी से नवमी शताब्दी के बीच की मानी जाती है बहुमूल्य मूर्ति के चारों तरफ एक ही सिला में अलग अलग देवी देवता पूजा करते नजर आते हैं जो अपने आप में अदभुत है इस तरह की मूर्ति और कहीं देखने को नहीं मिलती है गांव के लोगों ने बताया कि गांव के चारों तरफ जो टीले दिखते हैं कभी वहां कल्चुरी मंदिर हुआ करते थे इन मंदिरों की संख्या बीस के आसपास थी जो धीरे धीरे खत्म होते चले गए
पांच पीढ़ियों से नवरात्रि में कर रहे सेवा
बिझौली मंदिर में पूजा करने वाले दशरथ कछवाहा ने बताया कि उनसे पहले पांच पीढ़ियां यंहा पर सेवा देते आ रहे हैं उनका परिवार लगभग तीन सो साल से यंहा पर नवरात्रि में पूजा करते चले आ रहे हैं नो दिनों तक उपवास रखकर सेवा करते हैं 1980 के पहले यहां पर पत्थरों से बना मंदिर हुआ करता था सबसे पहले खप्पर वाला मंदिर बनवाया गया था वर्ष 2011 में पक्के मंदिर का निर्माण किया गया था
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