होली 2025 : जाने होलिका दहन का मुहुर्त और इतिहास

होली भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और रंगीन त्योहार है, हर समय इसको मनाने में हुड़दंग , ढोल ,बाजे और रंगों से सराबोर मस्ती ही रही है। इस अनोखे त्यौहार को अब पूरी दुनिया में मनाया जाता है।

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन मास की स्ना.दा.पूर्णिमा 14 मार्च को है। जबकि वृत पूर्णिमा 13 मार्च को है इस दिन होलिका दहन किया जाएगा। 11 बजकर 2 मिनिट के बाद होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है।

होली क्यों मनाई जाती है क्या है इतिहास

होली का धार्मिक महत्व है, होलिका दहन के पीछे प्रहलाद और उसकी बुआ होलिका की कहानी प्रचलित है। राधा, कृष्ण और गोपियों के बीच भी होली मनाने का जिक्र मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में विस्तृत वर्णन में मिलता है।

विकिपीडिया के अनुसार जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी जिक्र मिलता है।

सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते थे। 

(विकिपीडिया) सबसे प्रामाणिक साक्ष्य मुगल काल के दस्तावेज में मिलते हैं । जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहाँ के समय होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी कहा जाता था। 

मिथक में भी होली की मस्ती के उदाहरण मिलते हैं.

सोलहवीं शताब्दी की अहमदनगर की पेंटिंग, मेवाड़ की चित्रकला ,बूंदी, कांगड़ा और मधुबनी शैली का चित्र हो कृष्ण और गोपियों की होली के चित्र।

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